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________________ निरुक्त कोश स्वयं के लिए निर्मित आहार आदि का सम्यक् प्रकार से विभाग कर साधुओं को दान देना यथासंविभाग (व्रत) है। १४५. अहिंगम (अधिगम) अधिगम्यन्ते-परिच्छिद्यन्ते पदार्था येन सोऽधिगमः । (आवहाटी २ प २७) जिसके द्वारा पदार्थों को जाना जाता है, वह अधिगम है । १४६. अहिगरण (अधिकरण) अधिकं अतिरित्तं उत्सूत्रं करणं अधिकरणम् । (निचू३ पृ ३८) सूत्र (शास्त्रविहित आचार) का अत्यधिक अतिक्रमण अधिकरण है। अधिक्रियत इति अधिकरणम् । (सूचू २ पृ ३६७) जिससे पाप में प्रवृत्ति होती है, वह अधिकरण है । १४७. अहिगरणकर (अधिकरणकर) अधिकरणं करोतीति अधिकरणकरः। (सूचू १ पृ ६५) जो अधिकरण/कलह करता है, वह अधिकरणकर है । १४८. अहिताव (अभिताप) अभिमुखं तापयतीति अभितापः । (सूचू १ पृ ८०) जो अभितप्त करता है, वह अभिताप है। १४६. अहिप (अधिप) अधिकं पांतीत्यधिपाः। (सूचू १ पृ ५३) जो अधिक व्यक्तियों का पालन रक्षण करते हैं, वे अधिप/ राजा हैं। १५०. अहिमर (अभिमर) अभिमुखं परं मारयन्ति तेऽभिमराः। (प्रटी प ४६) ____जो अभिमुख शत्रु को मारते हैं, वे अभिमर हैं। अधिक्रियते आत्मा नरकादिषु येन तदधिकरणम् । (स्थाटी प ३८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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