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________________ निरक्त कोश २५ जो अपाय/अनर्थों को देखता है, वह अपायदर्शी है । जो अपायों को दिखाता है, वह अपायदर्शी है। इहलोकापायान परलोकापायांश्च दर्शयतीत्येवंशीलोऽपायदर्शी । (व्यभा ३ टी प १८) जो इहलोक और परलोक के अपाय/दोषों को दिखाता है, वह अपायदर्शी है। १३६. अवादाण (अपादान) अपादीयते अपायतो-विश्लेषत आ- मर्यादया दीयते-खण्ड्यतेभिद्यते आदीयते वा गृह्यते यस्मात्तदपादानम्। (स्थाटी प १४०) जिससे अपाय/विश्लेषण और मर्यादापूर्वक भेदन या आदान/ ग्रहण किया जाता है, वह अपादान (कारक) है। १३७. असण (अशन) आसु खुहं समेई असणं । (आवनि १५८८) जो भूख का आशु शीघ्र शमन करता है, वह अशन/भोजन है । असिज्जइ खुहितेहिं जं तमसणं । (दजिचू पृ १५२) जो भूखे व्यक्तियों द्वारा खाया जाता है, वह अशन है । १३८. असब्भ (असभ्य) असभाजोग्गमसभं । (बृभा ७५३) जो सभा के योग्य नहीं है, वह असभ्य है । । १३९. असुर (असुर) अस्यत्यसावित्यसुरः। (उच पृ ६६) जो देवों को फेंकते हैं, वे असुर हैं। १. दोंच-अवखण्डने । २. (क) अस्यन्ति देवान् असुराः, सुराया अपानाद् वा (अचि पृ ५८) जो देवों को फेंक देते हैं, वे असुर हैं। जो सुरा/मदिरा-पान नहीं करते, वे असुर हैं। अस्यति क्षिपति देवान् असुरः । (वा पृ ५५६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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