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________________ निरुक्त कोश ६६. अणुत्तर (अनुत्तर) णत्थि जतो ऊत्तरतरो विसिट्टतरो सो अणुत्तरो। (दअचू पृ १६५) जिससे कोई उत्तर/विशिष्ट नहीं होता, वह अनुत्तर है । ७०. अणुपुग्विग (आनुपूर्विग) आनुपूर्वी—क्रमस्तं गच्छतीत्यानुपूर्विगः। (आटी प २६२) जो क्रम के अनुसार चलता है, वह आनुपूर्विक है । ७१. अणुमाण (अनुमान) अनु–लिङ्गग्रहणसम्बन्धस्मरणस्य पश्चान्मीयते—परिच्छिद्यते वस्त्वनेनेति अनुमानम् । (अनुद्वामटी पृ १९६) लिंग/चिह्न या संकेत की स्मृति के अनु/पश्चात् होने वाला ज्ञान अनुमान है। ७२. अणुरंगिणी (अनुरङ्गिनी) अनुरज्यते- अनुकारं विदधातीत्येवंशीलाऽनुरङ्गिनी । (सूर्यटी प १३६) जो शरीर का अनुकरण करती है, वह अनुरंगिनी/छाया है। ७३. अणुसासण (अनुशासन) अनुशास्यते येन तद् अनुशासनम् । (सूचू १ पृ ७४) जिसके द्वारा अनुशासित किया जाता है, वह अनुशासन श्रुतज्ञान है। ७४. अणुसासिअ (अनुशासित) अणुकूलं सास्यते स्म अनुशासितः । (उचू पृ २८) __ जो (गुरु के) अनुकूल शासित होता है, वह अनुशासित है । ७५. अणुसोयचारि (अनुस्रोतश्चारिन्) अनुस्रोतसा चरतीत्यनुस्रोतश्चारी। (स्थाटी प २६३) जो स्रोत/प्रवाह के पीछे-पीछे चलता है, वह अनुस्रोतचारी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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