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________________ निरुक्त कोश १. अंतेवासि (अन्तेवासिन्) __अन्ते-गुरोः समीपे वस्तुं शीलमस्यान्तेवासी। (स्थाटी प २३४) जो गुरु के अंत/समीप में वास करता है, वह अंतेवासी/शिष्य है । १०. अंधयार (अन्धकार) अन्धमिवान्धं चक्षुःप्रवृत्तिनिवर्तकत्वेनार्थात् जनं करोतीत्यन्धकारः। (उशाटी प ५१०) जो मनुष्य को अन्धे की भांति अंधा कर देता है, वह अंधकार है। ११. अंबर (अम्बर) अम्बेव-मातेव जननसाधादम्बा–जलं तस्य राणाददानादम्बरम् । (भटी प १५३१) जो अम्बा/माता के सदृश जननधर्मा है, अनेक पदार्थों की उत्पत्ति का कारण है, वह अम्बा/जल है । जो जल का दान करता है, वह अंबर/आकाश है। १२. अकयण्णु (अकृतज्ञ) कृतमुपकारं न जानातीत्यकृतज्ञः। (स्थाटी प २७५) जो किए हुए उपकार को नहीं जानता, वह अकृतज्ञ है । १३. अकिंचण (अकिञ्चन) नत्थि जस्स किंचणं सोऽकिंचणो । (दअचू पृ ११) जिसके पास कुछ भी नहीं है, वह अकिंचन/मुनि है। १४. अकुय (अकुच) न कुचतीत्यकुचः।। (व्यभा ८ टी प १६) जो स्पन्दन नहीं करता, वह अकुच है। १. 'अंबर' शब्द के अन्य निरुक्त(क) अमन्त्यत्र देवा अम्बरम्-जहां देवता अमन/गमन करते हैं, वह अंबर है। (ख) अम्बते शब्दायते (इति अम्बरम्)---जो शब्द करता है, वह अंबर है । (अचि पृ ३७) २. कुच्-स्पन्दने । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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