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________________ ४ १५. अक्कोस ( आक्रोश ) आस्यते यतस्स आक्रोशः । जिससे भर्त्सना की जाती है, वह आक्रोश है । १६. अक्ख (अक्ष) अश्नुत इत्यक्षः । अश्नीते नवनीतादिकमित्यक्षः । धुरा है । १७. अक्ख (अक्ष) जो नवनीत आदि चिकने पदार्थों से व्याप्त होता है, वह अक्ष / असु वावण' धाऊओ अक्खो जीवो उ भण्णए णियमा । जं वावयए भावे णाणेणं तेण अक्खो त्ति ॥ १८. अक्खर (अक्षर) न खरतित्ति अक्खरं । निरुक्त कोश अस भोयणम्मि अहवा सव्वदव्वाणि भोगमेतस्स । आगच्छंती जम्हा पालेइ य तेण अक्खोत्ति | ( जीतभा १२, १३ ) जो ज्ञानात्मा से अर्थों को जान लेता है, वह अक्ष / जीव है । जो सब द्रव्यों का भोग करता है, वह अक्ष है । (उच्च् पृ ७० ) ( उच्च पृ १३५) ( उशाटी प २४७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only जो क्षरित / नष्ट नहीं होता, वह अक्षर है । अर्थात् क्षरति न च क्षीयते इत्यक्षरम् । ( आवहाटी १ पृ१६ ) जो अर्थों का क्षरण / प्रकटन करता है, पर स्वयं क्षीण नहीं होता, वह अक्षर है । ( वृभा ४३ ) १. असु - व्याप्तौ । २. अशश् - भोजने । ३. एत्थक्खर सद्दो संचलणे वट्टइ, अकारो पडिसेहे, जम्हा णोक्खरति अओ अक्खरं । (आवचू १ पृ २५ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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