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________________ निरुक्त कोश ४. अंतग (अन्तक) अंतं करोतीति अंतकः । (सूचू १ पृ १६२) __ जो अन्त करता है, वह अंतक/मृत्यु है । ५. अंतगर (अन्तकर) अन्तं भवस्य कुर्वन्तीति अन्तकराः। (जंटी प १५५) जो भव का अन्त करते हैं, वे अंतकर मुक्तिगामी हैं । ६. अंतराय (अन्तराय) अन्तरा- दातृप्रतिग्राहकयोरन्तविघ्नहेतुतयाऽयते गच्छतीत्यन्तरायम् । (उशाटी प ६४१) दाता और प्रतिग्राहक के अंतरा/मध्य में जो विघ्न बनकर आता है, वह अंतराय है। ७. अंतलिक्ख (अन्तरिक्ष) अन्तः मध्ये ईक्षा-दर्शनं यस्य तदन्तरीक्षम् ।' (भटी प १४३१) जो (आकाश और पृथ्वी के) मध्य में देखा जाता है, वह अन्तरिक्ष/आकाश है। ८. अंतिय (अन्तिक) अंतेसु गामादीणि वसंतीति अंतिया। (सूचू २ पृ ३५७) जो ग्राम आदि के अंत में रहते हैं, वे अंतिक हैं । १. 'अंतरिक्ष' के अन्य निरुक्तअन्तर्मध्ये ऋक्षाण्यस्य द्यावापृथिव्योरन्तरीक्षते वा अन्तरिक्षम् । (अचि पृ ३७) जिसके मध्य में ऋक्ष/नक्षत्र होते हैं, वह अंतरिक्ष है। जो आकाश और पृथ्वी के बीच देखा जाता है, वह अंतरिक्ष है । अन्तरा थावापृथिव्योः क्षान्तं अवस्थितं भवति । (आप्टे पृ १२५) जो आकाश और पृथ्वी के बीच अवस्थित है, वह अन्तरिक्ष है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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