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________________ निरुक्त कोश १५६८. सरण (शरण) जं अस्सिता णिन्भयं वसंति तं सरणं ।' (आचू पृ ५३) जिसके आश्रय में निर्भय रूप से वास किया जाता है, वह शरण/गृह है। श्रयंति तमिति शरणम् । (सूचू १ पृ ४५) जिसका आश्रय लिया जाता है, वह शरण है। १५६६. सरस्सती (सरस्वती) सरो से अस्थि त्ति सरस्सतो। (दअचू पृ १५६) जो सर/प्रसरण करती है, वह सरस्वती/भाषा है । जो सर अर्थवान् होती है, वह सरस्वती है। १६००. सराग (सराग) सह रागेण--अभिष्वङ्गण मायादिरूपेण य स सरागः । (स्थाटी प ४६) जो राग/आसक्ति से युक्त है, वह सराग है । १६०१. सरासण (श रासन) शरा अस्यन्ते-क्षिप्यन्तेऽस्मिन्निति शरासनः। (जीटी प २५६) जिसमें वाण रखे जाते हैं, वह शरासन है। १६०२. सरीर (शरीर) सीर्यत इति शरीरं । (आचू पृ १४६) उत्पत्तिसमयादारभ्य प्रतिक्षणमेव शीर्यत इति शरीरम् । __ (स्थाटी प २८४) जो उत्पत्तिकाल से लेकर प्रतिक्षण शीर्ण/क्षीण होता है, वह शरीर है। १. 'शरण' का अन्य निरुक्त शीर्यते शीताद्यनेन शरणम् । (अचि प २१६) जो शीत आदि को शीर्ण/नष्ट करता है, वह शरण/गृह है। २. सरः-प्रसरणमस्त्यस्याः सरस्वती। सरो ज्ञान विद्यतेऽस्यामिति वा । (अचि पृ ५६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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