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________________ ३०२ निरुक्त कोश सरतीति शरीरं। (आचू पृ २०५) जो गति करता है, वह शरीर है। १६०३. सरूवि (सरूपिन्) सह रूपेण-मूर्त्या वर्तत इति सरूपिणः। (स्थाटी प ३६) जिनके रूप/संस्थान, आकृति होती है, वे सरूपी/सशरीर १६०४. सल्ल (शल्य) शलति शूलयति वा शल्यम् । (उचू पृ १८५) शल्यते-बाध्यते अनेनेति शल्यम् । (स्थाटी प १४३) जो गति करता है/प्रवेश करता है, वह शल्य है। जो शालित/पीड़ित करता है, वह शल्य है । १६०५. सल्लग (सल्लग) 'रगे लगे संवरणे' शोभनं लगनं संवरणं, इन्द्रियसंयमरूपं सल्लगः। (सूटी २ प ६८) इन्द्रियों का संवरण सल्लग/संयम है। १६०६. सवण (श्रवण) श्रूयते इति श्रवणम् । (प्रज्ञाटी प ३९६) जो सुना जाता है, वह श्रवण है । १६०७ सव्व (सर्व) स्त्रियते स इति श्रियते वाऽनेनेति सर्वः। (आवहाटी १ पृ ३१८) जो (समस्त का) समाहार कर लेता है, वह सर्व है। १६०८. सव्वजोणिय (सर्वयोनिक) सव्वासु जोणीसु उववज्जतीति सव्वजोणिया। (आचू पृ ३०५) जो सब योनियों में उत्पन्न होते हैं, वे सर्वयोनिक हैं। १. (क) शलत्यन्तविशति शल्यम् । (अचि पृ १७४) (ख) शल-गतो, शूल-रुजायाम् । २. सरति सर्वम्, सर्वतीति वा । (अचि पृ ३२१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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