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________________ ३०० १५२. सयक्कतु ( शतक्रतु) कतू पडिमा तास सतं फासितं जेण सो सयक्कतू । (दश्रुचू प ६४ ) जिसने सौ बार ऋतु / प्रतिमा का स्पर्श / पालन किया है, वह शतक्रतु / इन्द्र है । - १५६३. सयग्घी ( शतघ्नी ) शतं घ्नन्तीति शतघ्न्यः । ( उच् पृ १८२ ) जो सौ व्यक्तियों को एक साथ मारती है, वह शतघ्नी / शस्त्रविशेष है । १५४. सयण ( शयन ) सुप्पति जत्थ णं सयणं । जहां सोया जाता है, वह शयन है । १५६५. सयण ( शयन ) शय्यते - स्थीयते येष्विति शयनानि । जिन पर बैठा जाता है, वे शयन हैं । १५६६. सर (स्वर) निरुक्त कोश Jain Education International ( आचू पृ ३१२) अक्षस्य चैतन्यस्य स्वरणात् संशब्दनात् स्वराः । ( विभामहेटी १ पृ २१६) जीव / चैतन्य का जो शब्द है, वाणी है, वह स्वर है । १५६७. सरक्खर (स्वराक्षर ) अक्खरं अक्खरं सरंति-गच्छंति सरंति' वा इत्यतो सरक्खरं । ( नंचू पृ ५४ ) जो प्रत्येक अक्षर के साथ सरण / संयुक्त होते हैं, वे स्वर हैं । जो उच्चारण में सहयोगी बनते हैं, वे स्वर हैं । १. ( क ) कार्तिकश्रेष्ठत्वे शतक्रतुः ( उपाटी पृ १२४) (ख) 'शतऋतु' का अन्य निरुक्त शतं ऋतवोsस्य शतक्रतुः । ( वा पृ ५०८१ ) जिसने सौ बार ऋतु/यज्ञ किया है, वह शतक्रतु / इन्द्र है । २. स्वर्, स्वृ— to sound ( आप्टे पृ १७४४) ( आटी प ३०७ ) For Private & Personal Use Only शतं ऋतूनाम् — अभिग्रह विशेषाणां यस्यासौ www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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