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________________ • निरक्त कोश २९७ समाहितं वा स्वस्थं मनो यस्य स समाहितमनाः । (प्रटी प १११) जिसका मन स्वस्थ है, वह समाहितमना है । १५७७. समाहिय (समाहित) सम्यगाहिताः तपःसंयम उद्युक्ताः समाहिताः। (आटी प १५६) जो तप और संयम में संलग्न हैं, वे समाहित हैं । १५७८. समिइ (समिति) सम्ममयति त्ति समिती। (जीतभा ८०४) जिसके द्वारा (साधक) सम्यक् गति/प्रवृत्ति करता है, वह समिति है। १५७६. समिय (समित) सम्मं इतो समितो। (आचू पृ ३१५) जो सम्यक्रूप से प्रवृत्ति करता है, वह समित/मुनि है। १५८०. समुग्घाय (समुद्घात) सम्यक् अपुनर्भावेनोत्-प्राबल्येन कर्मणो हननं घातः प्रलयो यस्मिन् प्रयत्नविशेषेऽसौ समुद्घात इति । (आवहाटी १ पृ २६३) जिस प्रयत्न में कर्मों का प्रबलता से क्षय होता है, वह समुद्घात है। १५८१. समुच्छेय (समुच्छेद) सामस्त्येन प्रकर्षण च छेदः समुच्छेदः। (स्थाटी १ प ३६३) समग्रता से उखाड़ देना समुच्छेद/विनाश है । १५८२. समुट्टित (समुत्थित) समं संगतं वा संजमउत्थाणेण उद्वितो समुट्टितो। (आचू पृ ७७) संयम के उत्थान/पराक्रम में जो सम्यक्रूप से उपस्थित है, वह समुत्थित है। १. सम्यक्–सर्ववित्प्रवचनानुसारितया इतिः-आत्मनः चेष्टा समितिः । (उशाटी प ५१४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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