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________________ २६२ निरक्तकोश जहां एक से अधिक भाव नियत रूप से एक साथ वर्तन करते हैं, वह सन्निपात (भाव) है। १५५०. सण्णिहाण (सन्निधान) सन्निधीयते क्रिया अस्मिन्निति सन्निधानम् । (स्थाटी प ४१०) सन्निधीयते-आधीयते यस्मिंस्तत् सन्निधानम् । (अनुद्वामटी प १२३) जिसमें क्रिया सन्निहित होती है, वह सन्निधान/आधार है । १५५१. सण्णिहि (सन्निधि) संनिधीयतेऽनयाऽऽत्मा दुर्गताविति संनिधिः। (दटी ११७) ____जो आत्मा को दुर्गति में सन्निहित करती है, वह सन्निधि/ संग्रह है। सम्यग् निधीयते—अवस्थाप्यत उपभोगाय योऽर्थः स सन्निधिः। (आटी प १०८) उपभोग के लिए जिसका संचय किया जाता है, वह सन्निधि है। १५५२. सण्णिहिकामि (सन्निधिकामिन्) सणिहि कामयतीति सन्निहिकामी। (दजिचू पृ २२०) जो सन्निधि संयम की कामना करता है, वह सन्निधिकामी १५५३. सत्त (सत्त्व) सत्ते सुभासुभेहिं कम्मेहि तम्हा सत्ते। (भ २/१५) शुभाशुभ कर्मों से जिसकी सत्ता है, वह सत्त्व/प्राणी है । १५५४. सत्थ (शास्त्र) शास्यतेऽनेनेति शास्त्रम् । (आवनिदी पृ ४४) जिसके द्वारा (सूत्रार्थ) शासित किया जाता है, वह शास्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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