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________________ निरुक्त कोश २८१ समं ग्रस्ते इति संग्रामः। (उचू पृ ५६) - जो एक साथ (बहुतों को) कालकवलित करता है, वह संग्राम है। १४८६. संघ (सङ्घ) संघातयतीति संघः। (व्यभा ४/२ टी प ६७) जो सबको संहत/सम्मिलित करता है, वह संघ है । १४६०. संघयण (संहनन) संहन्यन्ते-धातूनामनेकार्थत्वाद् दृढी क्रियन्ते शरीरपुद्गलाः कपाटादयो लोहपट्टिकादिनेव येन तत् संहननम् । (नक १ टी पृ ४०) जिसके द्वारा शरीर के पुद्गल दृढ़ होते हैं, वह संहनन अस्थि-रचना विशेष है। १४६१. संघाडी (सङ्घाटी) संघातिज्जति त्ति संघाडी। गुणसंघायकारणी वा संघाडी। (निचू ३ पृ ३२६) __ जो गुण/तन्तु के संघात समूह से निर्मित है, वह संघाटी/ शाटिका है। "१४६२. संघात (सङ्घात) संघातयति-पिण्डीकरोति औदारिकपुद्गलान् येन हेतुना संघातमुच्यते। (प्राक १ टी पृ ४५) जिस कारण से औदारिक आदि पुद्गल संहत पिण्डीभूत होते हैं, वह संघात नामकर्म है। १४६३. संघायविमोयग (सङ्घातविमोचक) कर्मणां ज्ञानावरणीयादीनां संघाताद्विमोचयति प्राणिन इति संघातविमोचकः। (व्यभा ४/२ टी प ६६) जो कर्म संघात/समूह से विमुक्त करता है, वह संघातविमोचक/जिनशासन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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