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________________ २८० १४८३. संखिज्ज ( संख्येय) संख्यायत इति संख्येयः । १४८४. संग ( सङ्ग) सज्जति जेण स संगो । जिसकी गणना की जा सकती है, वह संख्येय है । १४८५. संगकर ( सङ्गकर) ( आचू पृ १०६ ) जिसके द्वारा प्राणी आसक्त होता है, वह संग / आसक्ति है । संगं कुर्वन्तीति संगकराः । (उच् पृ २१६ ) जो संग / आसक्ति पैदा करते हैं, वे संगकर / इन्द्रिय-विषय हैं । १४८६. संग्रह (संग्रह) संग्रहणं संगिण्हइ सं गिज्यंते व तेण जं भेया । तो संगहो त्ति संगहिय पिंडियत्थं वओ जस्स ॥ ( विभा २२०३ ) अशेष विशेष तिरोधानद्वारेण सामान्यरूपतया समस्तं जगदादत्ते इति संग्रहः । ( प्रसाठी प २४३) १४८७. संगह ( सङ्ग्रह) जो विशेष का परिहार करते हुए सामान्य रूप से सम्पूर्ण वस्तुओं को ग्रहण करता है, वह संग्रह ( नय) है | संगृह्णातीति संग्रहः । ( आवहाटी १ पृ २१ ) निरुक्त कोश १४८८. संगाम ( स ग्राम ) Jain Education International जो संग्रह करता है, वह संग्रह / संग्राहक है । १. 'संग्राम' का अन्य निरुक्त सङ्ग्रामयन्तेऽत्र सङ्ग्राम: । (अचि पृ १७७ ) ( व्यभा ४ / २ टी प ५० ) संगमतीति संगामो ।' ( आचू पृ २४३ ) जहां दो सेनाओं का संगम / मिलन होता है, वह संग्राम है । समस्तं ग्रस्यते ग्रस्यंते वा तस्मिन्निति सङ्ग्राम: । ( सूचू १ पृ७९ ) जहां सब कुछ ग्रस्त / नष्ट होता है, वह संग्राम है । जहां संग्राम / युद्ध किया जाता है, वह संग्राम है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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