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________________ २८२ निरक्त कोश १४६४. संचयण (सञ्चयन) संचीयत इति सञ्चयनम् । (प्रटी प ९३) ___ जो संचित किया जाता है, वह संचय/परिग्रह है। १४६५. संजम (संयम) सं एगीभावम्मि जमउवरम एगभावउवरमणं । सम्मं जमो वा संजमो मण-वइ-कायाण जमणं तु ॥ (जीतभा ११०७) एकान्ततः उपरति संयम है। मन, वचन और काया का सम्यक् संयमन/नियमन संयम है। १४६६. संजय (संयत) संमं यतो संयतो।' (उचू पृ २०३) सम्--एकोभावेन यतः संयतः। (आवहाटी २ पृ १७) जो सम्यक् रूप से/समग्र रूप से यत्नवान् है, वह संयत है । १४६७. संजलण (संज्वलन) सम्-ईषद् ज्वलयन्तीति संज्वलनाः । (प्रज्ञाटी प ४६८) ___जो (संयमी को) सम्-किचित् ज्वलित/उत्तेजित करता है, वह संज्वलन (कषाय) है। १४६८. संजलण (संज्वलन) संजलतीति संजलणो। (दश्रुचू प ३६) जो संज्वलित/उत्तेजित होता है, वह संज्वलन/क्रोधी है । १४६६. संजूह (संयूथ) सङ्गतं-युक्तार्थ यूथं–पदानां पदयोर्वा समूहः संयूथम् । (स्थाटी प ४७३) संगत युक्तियुक्त अर्थ वाले पदों का यूथ/समूह संयूथ/समास १. सम्यग् यतते सदनुष्ठानं प्रतीति संयतः । (उशाटी प ४१६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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