SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निरुक्त कोश २७६ १४७७. स (श्वन्) शयति श्वसिति वा श्वा।। (उचू पृ २०३) जो इधर उधर घूमता है, वह श्वा/कुत्ता है। जो (शीघ्रता से) श्वास लेता है, वह श्वा/कुत्ता है । १४७८. संकम (संक्रम) संकमिज्जति जेण सो संकमो। (निचू २ पृ ३४) जिससे संक्रमण/पार किया जाता है, वह संक्रम/सेतु है। १४७६. संका (शङ्का) संसयकरणं संका। (जीतभा १०३६) संशय करना शंका है। • १४८०. संखडि (दे) आउयखंडणा संखडी। (आचू पृ ३०९) जो (प्राणियों के) आयुष्य को खंडित करती है, वह संखडी/जीमनवार है। १४८१. संखा (संख्या) सम्यक् ख्यायते-प्रकाश्यतेऽनयेति संख्या। (आटी प २१०) जो (तत्त्व का) सम्यक् रूप से ख्यापन/प्रकाशन करती है, वह संख्या/प्रज्ञा है। १४८२. संखा (संख्या) संख्यायते-निश्चीयते वस्त्वनयेति संख्या। (अनुद्वामटी प ११६) जो वस्तु की निश्चित परिगणना करती है, वह संख्या है। १. 'व्योम' का अन्य निरुक्त व्ययति छादयति मां व्योम । (अचि पृ ३७) २. श्वयति गच्छतीति श्वा । (शब्द ५ पृ १७७) ३. आउआणि जम्मि जीवाण संखंडिज्जति सा संखडी। (निचू २ पृ २०६) 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy