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________________ "निरुक्त कोश २७१ १४३८. विसूइया (विसूचिका) विध्यतीव शरीरं सूचिभिरिति विसूचिका। (उशाटी प ३३८) जो वायु शरीर को सूचि/मूई-बेध की तरह पीड़ित करता है, वह विसूचिका/हैजा है। १४३६. विसेसण (विशेषण) विशेष्यते परस्परं पर्यायजातं भिन्नतया व्यवस्थाप्यते अनेनेति विशेषणम् । (व्यभा १ टी प १६) जिसके द्वारा विशेषित/भिन्नता आपादित की जाती है, वह विशेषण है। १४४०. विसोहि (विशोधि) कम्ममलिणो आता विसोहिज्जति विसोही। (अनुद्वाचू पृ १४) कर्ममलिन आत्मा जिससे विशुद्ध होती है, वह विशोधि/ आवश्यकसूत्र है। १४४१. विस्साम (विश्राम) विश्राम्यते-विरम्यते एष्विति विश्रामाः । (प्रसाटी प १६) आगम पाठ के वे स्थल जहां विश्राम लिया जाता है, वे विश्राम/सम्पदा/विश्रमणस्थान हैं । १. (क) सूचीभिरिव गात्राणि तुदन् सन्तिष्ठतेऽनिलः । यस्याजीर्णेन सा वैद्य विसूचीति निगद्यते ॥ (ख) 'विसूचिका' का अन्य निरुक्तविशेषेण सूचयति मृत्युमिति विसूचिका । (शब्द ४ पृ ४६२) जो विशेष रूप से मृत्यु को सूचित करती है, वह विसूचिका २. अट्ठ नवट्ठ य अट्ठवीस सोलस य वीस वीसामा । मंगलइरियावहिया सक्कत्थयपमुह दंडेसु ॥ (प्रसा ७८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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