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________________ -२६८ १४२१. वियड ( विकट ) विगतजीवं विगडं । १४२२. वियाण ( वितान ) जो जीवरहित है, वह विकट / अचित्त / प्रासुक है । वितण्णत इति वियाणं । १४२३. वियाग ( विजानक) जो फैलाया जाता है, वह वितान / चंदवा है | १४२४. वियालचारि ( विकालचारिन् ) विकालेsपि रात्रावपि चरतीति विकालचारी | सव्वं जाणइति वियाणगो । जो सब कुछ जानता है, वह विजानक / सर्वज्ञ है | १४२५. विवाहित ( व्याख्यात) विविहं आहिते वियाहिते । Jain Education International १४२६. विरत (विरत ) ( आचू पृ ३०८ ) (ओटी पृ १९४) जो विकाल / रात्री में गमन करते हैं, वे विकालचारी हैं । १४२७. विवज्जास ( विपर्यास) निरुक्त कोश ( निचू १ पृ १५७ ) विपरीततामेवैति विपर्यासः । ( आचू पृ १६७ ) जो विविध प्रकार से आख्यात / कथित है, वह व्याख्यात है । पाणवहादीहि आसवदारेहि पविरमइत्ति विरए । ( दजिचू पृ ३३४ ) जो आश्रवों से विरत रहता है, वह विरत / मुनि है । ( नंचू पृ १ ) For Private & Personal Use Only ( सूचू १ पृ ४८ ) जो विपरीतता का रक्षण करता है, वह विपर्यास है । www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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