SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६७ निरुक्त कोश १४१६. विमाण (विमान) विशेषेण मानयन्ति–उपभुञ्जन्ति सुकृतिन एतानीति विमानानि ।' (उशाटी प ७०१) सुकृत पुण्य करने वाले जिनका विशेष भोग करते हैं, वे विमान हैं। १४१७. विमुह (विमुख) मुखस्य आदेरभावाद्विमुखम् । (भटी पृ १४३१) जिसके मुख प्रवेशद्वार का कोई आदि बिंदु नहीं है, वह विमुख/आकाश है। १४१८. विमोह (विमोक्ष) विमोक्खतेति विमोहा। (आचू पृ २८७) जो बन्धन से मुक्त होते हैं, वे विमोक्ष/विमुक्त हैं । १४१६. वियंतिकारय (व्यन्तकारक) विसिट्ठा अंती वियंती, वियंती करेति वियंतीकारओ। (आचू पृ २७६) विशिष्ट प्रकार का अंत/मरण व्यंत है, जो विशिष्ट प्रकार से व्यंत/मरण करता है, वह व्यंतकारक है। १४२०. वियक्खण (विचक्षण) । विविधमनेकप्रकारमाचष्टे विचक्षणः। (दजिचू पृ २०६) जो विविध प्रकार से अभिव्यक्ति करता है, वह विचक्षण १. 'विमान' का अन्य निरुक्तविमान्ति वर्तन्तेऽस्मिन् देवा इति विमानः । (अचि पृ १८) देवता जिसमें वास करते हैं, वह विमान है । विगतं मानमुपमा यस्य विमानम् । (शब्द ४ पृ ४१५) जो अनुपमेय है, वह विमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy