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________________ २६६ निरुक्त कोश १४१०. विप्पसण्ण (विप्रसन्न) विशेषेण विविधैर्वा भावनादिभिः प्रकारैः प्रसन्ना विप्रसन्नाः । (उशाटी प २४६) जो विशिष्ट या विविध प्रकार से प्रसन्न हैं, वे विप्रसन्न हैं। १४११. विभंग (विभङ्ग) विरुद्धो वितथो वा अन्यथा वस्तुभङ्गो-वस्तुविकल्पो यस्मिस्तद्विभङ्गम् । (स्थाटी प ३६८) ___जिसमें भंग/विकल्प ज्ञान विरुद्ध या वितथ होता है, वह विभंगज्ञान है। १४१२. विभंग (विभङ्ग) विविधो विशिष्टो वा विभागो विभङ्गः। (सूचू २ पृ ३५४) विविध या विशिष्ट प्रकार का विभाग करना विभङ्ग है। १४१३. विभत्ति (विभक्ति) विभज्यते कर्तृत्वकर्मत्वादिलक्षणोऽर्थो यया सा विभक्तिः। (स्थाटी प ४०६) जिससे कर्ता, कर्म आदि कारकों का विभाजन होता है, वह विभक्ति है। १४१४. विभासा (विभाषा) वैविक्त्येन भाषणं विभाषा। (बृटी पृ ३) विविध प्रकार से भाषण/कथन करना विभाषा है । १४१५. विमत्ता (विमात्रा) विषमा विविधा वा मात्रा-कालविभागो विमात्रा। (भटी प २६) ___ जो विषम और विवध प्रकार की मात्रा/कालविभाग है, वह विमात्रा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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