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________________ " निरुक्त कोश १४०३. विधार ( विधार) विविहि पगारेहिं धारेयत्थं विधारो तु । व्यवहार है । ( जीतभा ६५६ ) विविध प्रकार से जो अर्थ की धारणा होती है, वह विधार / १४०४. विधारग ( विधारक ) विविहं वा धारए विधारए । ( आचू पृ २२३ ) जो विविध प्रकार से धारण करता है, वह विधारक है । १४०५. विधारणा ( विधारणा ) विविधैः प्रकारैः विशिष्टं चार्थमुद्धृतमर्थपदं यया धारणया स्मृत्या धारयति सा विधारा विधारणा । ( व्यभा १० टी प ८६ ) जिस धारणा की स्मृति के आधार पर विविध प्रकार से तथ्य की धारणा की जाती है, वह विधारा या विधारणा है । १४०६. विधूतकप्प ( विधूतकल्प ) विविहं धृतं विधूतं, कप्पइत्ति कप्पो, विधुणिज्जति जेण अट्ठविहो कम्मरयो सविधूतको । ( आचू पृ १२२ ) अष्टप्रकार के कर्म संस्कारों का जो विधुनन / नाश करता है, वह विकल्प है | -१४०७. विप्पडिवण्ण ( विप्रतिपन्न ) विरुद्धं मार्ग प्रतिपन्नाः विप्रतिपन्नाः । जो विपरीत मार्ग को स्वीकार है | १४०८ विप्पमुक्क ( विप्रमुक्त) १४०९. विप्पवास ( विप्रवास ) Jain Education International २६५ विशेषेण प्रवासोऽन्यत्र गमनं विप्रवासः । अन्तर- बाहिरगंथबंधणविविहप्पगारमुक्का विप्यमुक्का । ( अचू पृ ५६ ) जो सर्वथा बाह्य और आभ्यन्तर बंधन से मुक्त हैं, वे विप्रमुक्त हैं । करता है, ( सूटी २ प २१ ) वह विप्रतिपन्न For Private & Personal Use Only विशेष रूप से अन्यत्र प्रवास करना विप्रवास है । (व्यभा २ टी प २५) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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