SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ निरक्त कोश विविध प्रकार से एवं विशिष्ट प्रकार से गर्हणीय दोषों की चिकित्सा/अपनयन करना विचिकित्सा है । १३६७. वित्त (वित्त) विद्यते इति वित्तं । (सूचू १ पृ २३) जो प्राप्त होता है, वह वित्त/धन है । १३९८. वित्तासण (वित्रासन) विविधं त्रासनं वित्रासनं । (उचू पृ ६७) जो विविध प्रकार से त्रस्त करता है, वह वित्रासन है। १३९६. वित्ति (वृत्ति) वर्तते शरीरं यया सा वृत्तिः। (प्रसाटी प ४५) जिसके द्वारा शरीर टिकता है, वह वृत्ति/भिक्षा है । १४००. वित्तिय (वृत्तिद) वृत्ति वा आश्रितलोकानां ददाति यत् तद् वृत्तिदम् । (ज्ञाटी प ४) जो आश्रित व्यक्तियों को वृत्ति/आजीविका देता है, वह वृत्तिद है। १४०१. वित्तेसि (वित्तैषिन्) वित्तं-द्रव्यं तदन्वेष्टुं शीलं येषां ते वित्तैषिणः। (सूटी २ प १४६) जो वित्त/धन की खोज करते हैं, वे वित्तैषी हैं । १४०२ विदंसग (विदंशक) विदंशतीति विदंशकः । (प्रटी प १५) जो विशेष रूप से काटता है, वह विदंशक/बाज आदि है। १. विद्यते लभ्यते इति वित्तम् । (अचि पृ ४५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy