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________________ निरुक्त कोश २६३. १३६०. विणीयकरण (विनीतकरण) विशेषतः संयमयोगेषु नीतानि करणानि मनोवाक्कायलक्षणानि येन स विनीतकरणः। (व्यभा ४/२ टी प ४०) जो करण-मन, वचन और काया को विशेष रूप से संयम में नियोजित करता है, वह विनीतकरण है। १३६१. विण्णत्ति (विज्ञप्ति) विशेषेण ज्ञापनं विज्ञप्तिः । (नंटी पृ ४३) ___विशेषरूप से प्रकट करना विज्ञप्ति/विज्ञान है । १३९२. विण्णाण (विज्ञान) विविहं विसिट्ठौं वा णाणं विण्णाणं । (आचू पृ १३५) विविध एवं विशिष्ट प्रकार का ज्ञान विज्ञान है। विनायति जेण तं विण्णाणं । (आचू पृ १३६) जिससे विशेष रूप से जाना जाता है, वह विज्ञान है। १३६३. विण्णात (विज्ञात) विविहं विसिटुं वा णातं विण्णातं। (सूचू २ पृ ३३२) जो विविधता या विशिष्टता से ज्ञात है, वह विज्ञात है। १३६४. विण्णायग (विज्ञायक) विविधं-अनेकधा जानातीति विज्ञायकः। (नंटी पृ ३) जो विविध प्रकार से जानता है, वह विज्ञायक है। १४६५. वितद्द (वितर्द) विविधं तदतीति वितर्दः। (आटी प २५२) जो विभिन्न प्रकार से हिंसा करता है, वह वितर्द/हिंसक १३६६. वितिगिच्छा (विचिकित्सा) वीति-विशेषेण विविधप्रकारैर्वा चिकित्सामिप्रतिकरोमि निराकरोमि गर्हणीयान् दोषान् इति विचिकित्सामि । (स्थाटी प २०८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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