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________________ २६२ निरक्त कोश १३८६. विणअ (विनय) विनीयते-अपनीयते कर्म येन स विनयः ।। (सूटी १ प २४२) जिसके द्वारा कर्मों का विनयन किया जाता है, वह विनय विशिष्टो विविधो वा नयो विनयः। (उशाटी प १६) जो विशिष्ट एवं विविध प्रकार का नय/नीति है, वह विनय १३८७. विणयन्नु (विनयज्ञ) विनयो ज्ञानदर्शनचारित्रौपचारिकरूपस्तं जानातीति विनयज्ञः । (आटी प १३१) जो विनय को जानता है, वह विनयज्ञ है। १३८८. विणिच्चय (विनिश्चय) विशेषेण निश्चयो विनिश्चयः । विशेष निश्चय विनिश्चय है। निराधिक्ये चयनं चयः-पिण्डीभवनं अधिकश्चयो निश्चयः । (अनुद्वामटी प २४५) जिसमें चय/उपचय अधिक होता है, वह निश्चय/विनिश्चय १३८९. विणीय (विनीत) विशेषेण नीतः-प्रापितः प्रेरकचित्तानुवर्तनादिभिः श्लाघादिति विनीतः। (उशाटी प ४६) जो विशेष रूप से प्रेरक के चित्तानुकूल वर्तन कर प्रशंसा प्राप्त करता है, वह विनीत है । १. "विनय' का अन्य निरुक्तविशेषेण नयतीति विनयः । (शब्द ४ पृ ४०१) जो विशिष्टता की ओर ले जाता है, वह विनय है । २. विनीत' का अन्य निरुक्त शास्त्रादिना विनीयते स्म विनीतः । (अचि पृ.६६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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