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________________ निरक्त कोश २५५ १३४४. ववहारि (व्यवहारिन्) व्यवहरतीत्येवंशीलो व्यवहारी। (व्यभा १ टी प ३) जो आगम आदि पांच प्रकार के व्यवहार/आचार का आच रण करता है, वह व्यवहारी है । १३४५. ववहारि (व्यवहारिन्) व्यवहरंतीति व्यवहारिणो। (सूचू १ पृ.६६) जो व्यापार करते हैं, वे व्यवहारी/व्यापारी हैं। १३४६. वसण (व्यसन) वसणं णाम चित्तं तंमि वसंतीति वसणं ।' (चित्त) जिसमें वास करता है, वह व्यसन है । तस्स वा वसे वट्टतीति वसणं । (निचू १ पृ १६४) मनुष्य जिसके वशवर्ती हो जाता है, वह व्यसन है । १३४७. वसट्टि (वशवतिन्) गुरुणां वशे वर्त्तते इति वशवर्ती। (सूचू १ पृ १०७) जो गुरु के वश/अनुशासन में रहता है, वह वशवर्ती है । १३४८. वसु (वसु) ___ वसति जेहिं गुणो सो वसु ।' (आचू पृ २१०) जिसमें गुण निवास करते हैं, वह वसु है । १३४६. वसुम (वसुमत्) वसे जस्स वदति इंदियकषाया सो य वसुमं। (आचू पृ ४२) जिसके इन्द्रिय और कषाय वशवर्ती हैं, वह वसुमान है। १. 'व्यसन' का अन्य निरुक्तविशेषेणाऽस्यते क्षिप्यते चित्तमेभिरिति व्यसनानि । (अचि पृ १६३) जो चित्त को विशेष रूप से विक्षिप्त करते हैं, वे व्यसन हैं। २. वीतरागो वसुर्जेयो जिनो वा संयतोऽथवा। सरागोऽनुवसुः प्रोक्तः स्थविरः श्रावकोऽथवा ॥ (आचू पृ २१०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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