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________________ २५६ निरुक्त कोश १३५०. वसुहा (वसुधा) वसूनि निधत्ते इति वसुधा । (उचू पृ २०६) जो वसु/रत्नों को धारण करती है, वह वसुधा/पृथ्वी है। १३५१. वहग (वधक) वधन्तीति वधकाः। (दटी प ७८) जो वध करते हैं, वे वधक हैं । १३५२. वहण (वहन) उद्यतेऽनेन वोढव्य मिति वहनम् । (उशाटी प ५५०) जिसके द्वारा भार ढोया जाता है, वह वहन वाहन है । १३५३. वाअ (वात) वातीति' वातः । (उचू पृ १८२) जो गन्ध को ग्रहण करती है, वह वात/हवा है । जो बहती है, वह वात/हवा है। १३५४. वाअ (वाच्) वक्तीति वाक् । (उचू पृ १५३) उच्यते वाऽनयेति वाक् । (आवहाटी १ पृ ३०४) जो बोलती है/शब्द करती है, वह वाक् वाणी है । १३५५. वाअर (बादर) वातं रातीति वातरो। (दअचू पृ ८१) ____ जो वाणी-इन्द्रिय का विषय बनता है, वह बादर है। १३५६. वाउरिय (वागुरिक) वागुरा-मृगबन्धनं तया चरन्तीति वागुरिकाः । (अनुद्वामटी प ११९) १. वांक्-गतिगन्धनयोः। २. 'वात' का अन्य निरुक्त वायति वा द्रव्याणि वायुः । (अचि पृ २४६) जो पदार्थों को चालित करती है, वह वायु है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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