SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ निरक्त कोश उच्यन्त इति वचनानि । (अनुद्वामटी प १२३) जो कहे जाते हैं, वे वचन हैं। १३४१. ववसाय (व्यवसाय) विशिष्ट अवसायः व्यवसायः । (आवहाटी १ पृ ७) जो विशिष्ट अवसाय/निश्चय है, वह व्यवसाय है। १३४२. ववहार (व्यवहार) विशेषतोऽवाहियते निराक्रियते सामान्यमनेनेति व्यवहारः। (आवमटी प ३७५) ___ जो वस्तु के विशेष धर्मों का अवहरण/ग्रहण और सामान्य धर्मों का निराकरण करता है, वह व्यवहार (नय) है। १३४३. ववहार (व्यवहार) विविहं वा अवहरणं व्यवहारः। विविध प्रकार का आचरण व्यवहार है। विविधो वा अवहारः व्यवहारः। (उचू पृ ४३) विविध प्रकार का अवहार/निश्चय व्यवहार है। विधिवदवहरणाद् व्यवहारः। वपनात् हरणाच्च व्यवहारः । (बृचू प २) विधिना हारो व्यवहारः। (व्यभा १ टी प ४) विधिना उप्यते ह्रियते च येन स व्यवहारः । (व्यभा १ टी प ५) जो विधिपूर्वक प्रयुक्त होता है, जिसका बीज-वपन किया जाता है, वह व्यवहार है। व्यवह्रियतेऽपराधजातं प्रायश्चित्तं प्रदानतो येन स व्यवहारः।' (व्यभा ३ टी प १८) जो प्रायश्चित्त देने में व्यवहृत होता है, वह व्यवहार है । १. व्यवहारः आगमादिरूपपञ्चप्रकारः । (व्यभा ३ टी प १८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy