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________________ निरुक्त कोश २५३ वर्ण्यते-यथावस्थितं वस्तुस्वरूपं निर्णीयते अनेनेति वर्णः । (प्रज्ञाटी प ५६६) जिसके आधार पर वस्तु के यथार्थ स्वरूप का वर्णन निर्णय किया जाता है, वह वर्ण है। १३३६. वत्थ (वस्त्र) वासयतीति' वत्थं । (निचू २ पृ.५६) गातं आच्छादेति जम्हा तेण वत्थं । (निचू ३ पृ ५६६) ___ जो आच्छादित करता है/ ढकता है, वह वस्त्र है । १३३७. वत्थु (वस्तु) वसन्त्यस्मिन् गुणा इति वस्तु । (आवमटी प ४८५) जिसमें गुण विद्यमान रहते हैं, वह वस्तु है। १३३८. वय (व्रत) वियत इति व्रतम् । (उचू पृ १३८) जो अविरति रूप छिद्र को ढांकता है, वह व्रत है। १३३६. वय (वय) वएतीति वयो। (आचू पृ २६६) जो बीतती है, वह वय/अवस्था है। वयन्ति-पर्यटन्ति यस्मिन् स वयः। (आटी प १४१) जिसमें प्राणी भ्रमण करते हैं, वह वय/संसार है । १३४०. वयण (वचन) वयंति तेण अत्थमिति वयणं । (दअचू पृ १५६) वयणिज्ज वयणं । (दजिचू पृ २३४) जो अर्थ का कथन करते हैं, वे वचन हैं। १. वस्-आच्छादने । २. शरीरस्य वियन्ति क्रमेण गच्छन्ति वयांसि । (अचि पृ १२८) विगतौ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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