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________________ निरुक्त कोश २४३ जो रु / पृथ्वी से पैदा होते हैं, जीवित रहते हैं, वे रुजक / वृक्ष हैं । १२८२. रुद्द (रौद्र) रोतीति रुद्रः, तेण कृतं रौद्रम् ।' ( दअचू पृ १६ ) जो अत्यंत दीनता से अश्रुविमोचन करता है, चिन्तन करता है, वह रौद्र ध्यान है । १२८३. रूव (रूप) रूप्यते - अवलोक्यत इति रूपम् । जो देखा जाता है, वह रूप है । १२८४. रोग (रोग) रुजतीति रोगः । जो रुग्ण बनाता है, वह रोग है । - १२८५. रोयग ( रोचक ) सदनुष्ठानं रोचयत्येव केवलं न पुनः कारयतीति रोचकम् । १२८६. रोवग (रोपक ) रुपंति रोपणीया वा रोपका । जो विहित अनुष्ठान में केवल रुचि / प्रीति करती है, वह राचक ( सम्यकत्व ) है । १२८७. लउडसाइ ( लकुटशायिन् ) ( स्थाटी प २३) जिनको रोपा जाता है, वे रोपक / पौधे हैं । Jain Education International ( दअचू पृ १७ ) ( प्रसाटी प २८२ ) लगण्डं - वक्रकाष्ठं तद्वत् शेते यः स लगण्डशायी ( लकुटशायी ) । ( औटी पृ ७५ ) For Private & Personal Use Only ( दअचू पृ ७ ) जो लकुट | वकाष्ठ की भांति शयन करता है, वह लकुट - शायी / कायक्लेश का एक प्रकार है । १. हिंसाद्यतिक्रौर्यानुगतं रौद्रम् । ( आवहाटी २ पृ ६३ ) संछेदनैर्दहनभञ्जनमारणैश्च बन्धप्रहारदमनैविनिकृन्तनैश्च । यो याति रागमुपयाति च नानुकम्पां, ध्यानन्तु रौद्रमिति तत्प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥ ( दटी प ३२) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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