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________________ २४२ निरक्त कोश १२७७. रायदारिय (राजद्वारिक) राजद्वारमर्हतीति राजद्वारिकम् । (बृटी पृ १६२) जो राजद्वार के योग्य है, वह राजद्वारिक है।। राजाऽमात्यमहत्तमादिभवनेषु गच्छभिर्यत् परिभुज्यते तद् राजद्वारिकम् । (बृटी पृ १६१) राजद्वार पर जाते समय जिसका उपयोग किया जाता है, वह राजद्वारिक है। १२७८. रायहाणी (राजधानी) राजा धीयते-विधीयते अभिषिच्यते यासु ता राजधान्यः । (स्थाटी प ४५८) जिनमें राजा का अभिषेक किया जाता है, वे राजधानियां १२७९. रुइल (रुचिल) रुचिः-दीप्तिस्तां लाति-आददति रुचिलानि । (सूटी २ प ७) जो रुचि/दीप्ति को धारण करता है, वह रुचिल/सुन्दर १२८०. रुक्ख (रूक्ष) रुक् पृथिवी तं खातीति रुक्खो ।' (निचू २ पृ ३०६) ___ जो रुक्/पृथ्वी को खाता है, वह रूक्ष वृक्ष है। रुत्ति पुहवी खत्ति आगासं तेसु दोसुवि जहा ठिया तेण रुक्खा । __ (दजिचू पृ ११) जो रु/पृथ्वी और ख/आकाश-दोनों में स्थित हैं, वे रूक्ष/ वृक्ष हैं। १२८१. रुजग (रुजक) . रुत्ति पृथिवी तीय जी (जा) यंतित्ति रुजगा। (दजिचू पृ ११) १. 'रूक्ष' का अन्य निरुक्त रूक्षयति रूक्षः। (अचि पृ २४८) जो सूखकर रूक्ष/टूंठ हो जाता है, वह रूक्ष/वृक्ष है। A rt Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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