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________________ २४४ १२८८. लंगलिक (लाङ्गलिक) लाङ्गलं वा प्रहरणं येषां गले वा लम्बमानं सुवर्णादिमयं तद्येषां ते लाङ्गलिकाः । ( ज्ञाटी प ६४ ) जिनके लांगल / हल आजीविका का साधन होता है, वे लांगलिक / किसान हैं । front आयुध लांगल / हल होता है, वे लांगलिक / बलराम हैं । जिनके गले में स्वर्णमय हलाकृति होती है, वे लांगलिक / कापटिक हैं । १२८६. लंबण (लम्बन ) लम्ब्यन्ते इति लम्बनाः । ( ज्ञाटी प १६५ ) जो स्थिर रहने में आलंबन बनते हैं, वे लंबन / लंगर हैं । १२६०. लक्खण (लक्षण) लक्खिज्जइत्ति नज्जइ पच्चक्खियरो व जेण जो अत्थो । तं तस्स लक्खणं लक्ष्यते तदन्यव्यवच्छेदेन ज्ञायते येन तल्लक्षणम् । है | १२६१. लयण (लयन ) कपडिया जत्थ लयंति तं लयणं । निरुक्त कोश (सूर्यटीप २५६ ) जिससे वस्तु का पृथक् अस्तित्व जाना जाता है, वह लक्षण १२६२. लाढ (लाढ) Jain Education International ............. ॥ (दभा १२ ) ( अनुद्वाच् पृ ५३ ) कार्पेटिक जिसमें लीन होते हैं, वह लयन / पाषाणगृह है । येनकेनचित् प्रासुकाहा रोपकरणादिगतेन यापयति पालयतीति लाढः । है, वह लाढ / संयमी है । जो यत् किञ्चित् सामग्री से विधिपूर्वक जीवनयापन करता For Private & Personal Use Only विधिना आत्मानं ( सूटी १ प ९८९ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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