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________________ २३६ निरक्त कोश १२४७. मुत्ति (मुक्ति) मुच्यन्ते सकलकर्मभिः तस्यामिति मुक्तिः। (स्थाटी प ४२२) __ जहां जीव सब कर्मों से मुक्त होते हैं, वह मुक्ति है। १२४८. मुधाजीवि (मुधाजीविन्) मुधा अमुल्लेण तधा जीवति मुधाजीवी। (दअचू पृ १६०) जो मुधा/निष्कामवृत्ति से जीता है, वह मुधाजीवी है । १२४६. मुम्मुही (मुङ मुखी) विणओवक्कमंतो मूक इव भाषते मुम्मुही। (दश्रुचू प ३) जिसमें व्यक्ति मूक की तरह संभाषण करता हैं, वह मुमुखी/मनुष्य की नौवीं अवस्था है । मोचनं मुक्, मुचं प्रति मुखं-- आभिमुख्यं यस्यां सा मुमुखी ।' (स्थाटी प ४६७) जिसमें प्राणी मृत्यु के अभिमुख होता है, वह मुङ्मुखी/ मनुष्य की नौवीं अवस्था है। १२५०. मुसल (मुसल) मुहुर्मुहुर्लसति मुसलं : (अनुद्वा ३६८) जो बार बार (ऊखल का) स्पर्श करता है, वह मुसल है । १२५१. मुह (मुख) खद्यते तत् इति मुखम् । (उचू पृ १३६) जिससे खाया जाता है, वह मुख है। १. णवमी मुम्मुही नाम जं नरो दसमस्सिओ। जराघरे विणस्संतो जीवो वसइ अकामओ ॥ (दटी प ८) २. 'मुसल' के अन्य निरुक्तमुस्यते खण्ड्यतेऽनेन मुसलः, मुहुः स्वनं लाति वा । (अचि पृ २२४) जो टुकड़े टुकड़े करता है, वह मुसल है। जो बार बार शब्द करता है, वह मुसल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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