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________________ निरक्त कोश २३७ खन्यते' तत् खनति' वा तत् मुखम् । (उचू पृ २६६) विधाता ने जिसे बनाया है, वह मुख है । जो खनन/अवदारण करता है, वह मुख है । १२५२. मुहमंगलिय (मुखमङ्गलिक) मुखमङ्गलानि-चाटुवचनानि ये कुर्वन्ति ते मुखमङ्गलिकाः । (ज्ञाटी प ६४) जो प्रत्यक्ष में झूठी प्रशंसा करते हैं, वे मुखमंगलिक/ चापलूस हैं। १२५३. मुहरि (मुखरिन्) मुहेण अरिमावहतीति मुहरी।" (उचू पृ २७) जो मुख/वाणी से शत्रु बनाता है, वह मुखरी/वाचाल है। जो मुख से अरि/परिहास या कलह का आवहन करता है, वह मुखरी है। १२५४. मुहुत्त (मुहूर्त) मीयतेऽनेनेति मुहूर्तः । (सूचू १ पृ८८) जिसके द्वारा काल मापा जाता है, वह मुहूर्त है । १. खन्यते विधात्रा मुखम् । २. खनति विदारयति अन्नादिकमनेन मुखम् । (शब्द ३ पृ ७३४) ३. 'मुख' का अन्य निरुक्त मह्यते मुखम् । (अचि पृ १२६) जो शरीर की शोभा बढ़ाता है, वह मुख है । ४. 'मुखर' का अन्य निरुक्तमुखं सर्वस्मिन् वक्तव्येऽस्त्यस्य मुखरः। (अचि पृ८२) जो अनर्गल प्रलाप करता है, वह मुखर/वाचाल है । ५. 'मुहूर्त' के अन्य निरुक्तहूर्छति मुहूर्तः, मुहुरियति वा । (अचि पृ ३०) जो ठगता है, वह मुहूर्त काल है । (हूर्च्छ-कौटिल्ये) जो बीतता है, वह मुहूर्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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