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________________ निरुक्त कोश १२४२. मियवादि (मितवादिन् ) मितं - परिमिताक्षरं वदितुं शीलमस्येति मितवादी । १२४३. मियासण ( मिताशन) जो मित/ परिमित बोलता है, वह मितवादी है । मियं असतीति मियासणे । १२४४. मुंड (मुण्ड ) मुण्डयति - अपनयतीति मुण्ड: । जो मित भक्षण करता है, वह मिताशन है । सावज्जेस मोणवतीति मुणी । ( स्थाटी प ४७५ ) जो ( विषय और कषाय का ) मुण्डन / अपनयन करता है, वह us / है । १२४५. मुणि (मुनि) मुणतीति मुणी । मनुते जगतस्त्रिकालावस्थामिति मुनिः । " है १२४६. मुणि ( मुणि) जो सावद्य कार्यों के प्रति मौन है, वह मुनि है । Jain Education International ( बृटी पृ १०४४) मुणति - प्रतिजानीते सर्वविरतिमिति मुणिः । ' है । १. 'मुनि' का अन्य निरुक्त ( दजिचू पृ २८४ ) ( आचू पृ १८० ) ( सूटी २ प ४१ ) जो जगत् की त्रैकालिक अवस्थाओं को जानता है, वह मुनि मन्यतेऽसौ मुनि: । (अचि पृ १४ ) २३५ २. मुण् — प्रतिज्ञाने । ( उशाटी प ३५७ ) जो संयमी जीवन जीने की प्रतिज्ञा करता है, वह मुणि / मुनि (दअचू पृ २३३ ) For Private & Personal Use Only जिसका वचन मान्य होता है, वह मुनि है । www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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