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________________ निरुक्त कोश २३१ जो मही/पृथ्वी पर शयन करता है, वह महिष/भैंसा है। १२२६. महीरुह (महोरुह) महीए रुहंतीति महीरहा। (दअचू पृ ७) जो मही/पृथ्वी पर पैदा होते हैं, वे महीरुह/वृक्ष हैं । १२२७. महेसि (महर्षि) इसी-रिसी, महरिसी-परमरिसिणो।' (दअचू पृ ५६) जो महान् ऋषि हैं, वे महर्षि हैं । १२२८. महेसि (महैषिन्) महानिति मोक्षो तं एसन्ति महेसिणो। (दअचू पृ ५६) जो महान्/मोक्ष की एषणा करते हैं, वे महैषी/महर्षि हैं । महान्- बृहन् शेषस्वर्गाद्यपेक्षया मोक्षस्तमिच्छति-अभिलषतीति महदेषी। (उशाटी प ३६६) जो महान्/मोक्ष को चाहता है, वह महषी है । १२२६. माउ (मातृ) मानयति मन्यते वाऽसौ माता ।। जो मानित/पूजित होती है, वह माता है । (मिमीते) मिनोति वा पुत्रधर्मानिति माता। (उचू पृ १५०) जो पुत्र की योग्यताओं का अनुमापन करती है, वह माता मंहति पूजयंति देवानेनेति महिषः । (शब्द ३ पृ ६७७) देवों के लिए जिसकी बलि दी जाती है, वह महिष है । १. महान्तश्च ते ऋषयश्च महर्षयः । (दटी प ११६) . मान्यते पूज्यते या सा माता । (शब्द ३ पृ ६६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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