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________________ २३२ १२३०. मांस (मांस) मन्यते स भक्षयिता येनोपभुक्तेन बलवन्तमात्मानमिति मांसं । ( उच्च पृ १३३ ) जिसे खाकर व्यक्ति अपने आपको पुष्ट मानता है, वह मांस है । १२३१. माण (मान) मननम् - अवगमनं मन्यते वाऽनेनेति मानः । अपने आपको बड़ा मानना मान है । १२३२. माण (मान) मीयते इति मानम् । १२३३. माणव (मानव) माणंतित्ति माणवा । जो मनन करते हैं, वे मानव हैं । मा-निषेधे नवः प्रत्यग्रो मानवः । जिसके द्वारा मापा जाता है, वह मान / माप है । Jain Education International निरुक्त कोश ( स्थाटी प १८६ ) ( आमटी प ४४६ ) ३. 'मान' का अन्य निरुक्त मत्समो नास्तीति मननं मानः । (अचि पृ७४ ) मेरे जैसा दूसरा कोई नहीं है, ऐसा मानना मान है । For Private & Personal Use Only (भटी पृ १४३२) जिसका अस्तित्व नया नहीं है, अनादिकालीन है, वह मानव 1 १. मान्यतेऽनेन मांसम् । ( सूटी २ प १५१ ) 'मांस' का अन्य निरुक्त मांस भक्षयितामुत्र यस्य मांसमिहादम्यहम् । एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ ( अचि पृ १४० ) यहां मैं जिसका मांस खा रहा हूं, परलोक में मां / मेरा मांस स / वह खायेगा - यही मांस का मांसत्व है | ( अचू पृ ७२ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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