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________________ २३० निरुक्त कोश १२२०. महापाण (महापान) पिबति अर्थपदानि यत्रस्थितस्तत्पानं, महच्च तत्पानं च महापानम् । (व्यभा ६ टी प ४६) जिसमें महान् अर्थपदों का पान ज्ञान किया जाता है, वह महापान (ध्यान साधना) है। १२२१. महाभाग (महाभाग) महत्तं भजतीति महाभाग। (आवचू १ पृ ८६) जो महान् /मोक्ष का आसेवन करता है, वह महाभाग है। १२२२. महामुणि (महामुनि) महान्तं मुनतीति महामुनिः। (उचू पृ ५९) जो महान्/मोक्ष को जानता है, वह महामुनि है । १२२३. महावीर (महावीर) पहाणो वीरो महावीरो। (दअचू पृ ७३) महन्तं वीरियं यस्य स भवति महावीरो। (आवचू १ पृ ८६) जिसका वीर्य/पराक्रम महान् है, वह महावीर है । १२२४. महित (महित) त्रैलोक्यस्स मनोहिता महिता। जो तीनों लोकों के मन में समाविष्ट हैं, वे महित/अर्हत हैं। महिमाकरणेन महिता। (नंचू पृ ४६) जिनकी महिमा/स्तुति की जाती है, वे महित/पूजित हैं। १२२५. महिस (महिष) मह्यां शेते महिषः। (अनुद्वा ३६८) १. पिबति मिनोति एकाौँ । (व्यभा ६ टी प ४६) २. 'महिष' के अन्य निरुक्तमहति महिषः। (अचि पृ २८६) जो विशालकाय है, वह महिष है । (मह, --Increase आप्टे पृ १२४६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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