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________________ निरक्त कोश २२५ ११९२. मघव (मघवन्) मघवंति महामेहा, ते जस्स वसे संति से मघवं ।' (दश्रुचू प ६४) ___मघ/महामेघ जिसके वशवर्ती हैं, वह मघवा/इन्द्र है। . ११९३. मच्चिय (मर्त्य) मरंतीति मच्चिया। (आचू पृ ८३) जो मरणधर्मा हैं, वे मर्त्य हैं। ११९४. मज्झत्थ (मध्यस्थ) मझेहि चिट्ठतीति मज्झत्थो। (आचू पृ २८६) जो मध्य में रहता है, वह मध्यस्थ है। ११६५. मट्टिया (मृत्तिका) मयंति' तामिति मृत्तिका । (उचू पृ १३४) जिसे रौंदा जाता है, वह मृत्तिका है। ११९६. मणपज्जवणाण (मनःपर्यायज्ञान) पज्जवणं पज्जयणं पज्जाओ वा मणम्मि मणसो वा ।। तस्स व पज्जायादिन्नाणं मणपज्जवं नाणं । (विभा ८३) मनांसि पर्येति परिच्छिनत्ति मनःपर्यायम् । (नंटी पृ ११२) जो मन/मनोभावों को जानता है, वह मनःपर्यायज्ञान है। ११६७. मणभक्खि (मनोभक्षिन्) मनसा भक्षयन्तीत्येवंशीला मनोभक्षिणः। (प्रज्ञाटी प ५१०) जो मन/चिन्तन से भोजन का आहरण करते हैं, वे मनो: भक्षी/देव हैं। १. 'मघवा' शब्द के अन्य निरुक्तमघः सौख्यमस्याऽस्ति मघवान् । मघो देवसभा सोऽस्यास्तीति वा। (अचि पृ ४०) जिसके (अपार) मघ/सुखसंपदा है, वह मघवा है। जिसके मघ/देवसभा है, वह मघवा है । २. मृदश्-क्षोदे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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