SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निरुक्त कोश २१५ जो मोक्षार्थी व्यक्तियों के द्वारा उपास्य है, वह भजन्त/ भगवान् है। ११४०. भंत (भान्त/भ्राजन्त) अहवा 'भा भाजो वा दित्तीए तस्स होइ भंतो त्ति । भाजतो चारिओ सो नाणतवोगुणजुईए ॥' (विभा ३४४७) ____जो ज्ञान आदि से दीप्त होता है, वह भांत या भ्राजन्त/ भगवान् है । ११४१. भंयण (भञ्जन) भंजते भज्यते वाऽसाविति असंयतैर्भञ्जनः। (सूचू १ पृ १७७) जो भंग विनाश करता है, वह भजन/लोभ है। जो आसक्त करता है, वह भजन/लोभ है। ११४२. भग (भग) भज्यत इति भगः। (स्थाटी प ३३) जिसका विभाग किया जाता है, वह भग/ऐश्वर्य है। जिसको भोगा जाता है, वह भग/भाग्य है। ११४३. भगव (भग्नवत्) भग्नवन्तः कषायादीनिति भगवन्तः। (जीटी प ४) जिन्होंने कषाय को भग्न/क्षीण कर दिया है, वे भग्नवान्/ भगवान हैं। १. भाति-दीप्यते भ्राजते वा दीप्यते एव ज्ञानतपोगुणदीप्त्येति भान्तो भ्राजन्तो वेति । (स्थाटी प ११८) २. (क) इस्सरियरूवसिरिजसधम्मपयत्तामया भगाभिक्खा । (विभा १०४८) (ख) ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणाः।। (आप्टे पृ ११८०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy