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________________ २१४ निरुक्त कोश ११३६. भंत (भवान्त) नेरयाइभवस्स व अन्तो जं तेण सो भवंतो त्ति । (विभा ३४४६) जो भव/संसार का अंत करता है, वह भवांत/भगवान् है । ११३७. भंत (भयान्त) अहवा भयस्स अंतो होइ भयंतो भयं तासो। (निभा ३४४६) जो भय त्रास का अंत करता है, वह भयान्त/भगवान् ११३८. भंत (भदन्त) भदि कल्याणसुहत्थोधाऊ तस्य य भदंतसद्दोऽयं । स भदंतो ...................॥ (विभा ३४३६) जो भद/कल्याण और सुख से युक्त है, वह भदन्त/भगवान् ११३६. भंत (भजन्त) अहवा भय सेवाए तस्स भयंतोत्ति सेवए जम्हा । सिवगइणो सिवमग्गं सेव्वो य जओ तदत्थीणं ॥' (विभा ३४४६) जो सिद्ध भगवान् तथा सिद्धि के मार्ग की उपासना करता है, वह भजन्त है। १. एत्थ भयंताइणं पागयवागरणलक्खणगईए। संभवओ पत्तेय द-य-ग-व-गाराइलोवाओ॥ हस्सेकारंतादेसओ य भंते त्ति सव्वसामण्णं । (विभा ३४५५,५६) २. (क) भजते-सेवते सिद्धान सिद्धिमार्ग वा अथवा भज्यते-सेव्यते शिवाथिभिरिति भजन्तः। (स्थाटी प ११८) (ख) भजि विभजि पविभजि धम्मरतनं ति भगवा । (विटी पृ ४५२) जो धर्म-रत्न का कथन करता है, वह भगवान् है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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