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________________ निरुक्त कोश १६१ वर्णों ( शब्द - शास्त्र ) का जो प्रकृष्ट प्रतिपादन है, वह प्ररूपणा है । १०१०. परोक्ख ( परोक्ष ) परओ पुण अक्खस्सा, वट्टत होइ पारोक्खं । अक्खो जीवो तस्स जं परतो तं परोक्खं । अक्ष / आत्मा से व्यक्तिरिक्त (इन्द्रिय ज्ञान होता है, वह परोक्ष है । परैरुक्षा -- सम्बन्धनं जन्यजनकभावलक्षणमस्येति परोक्षम् । ( जीतभा ११ ) ( आवचू १ पृ ७) आदि के द्वारा ) जो जिसका जन्य - जनकभावलक्षणरूप उक्षा / संबंध पर / दूसरों से होता है (आत्मा से नहीं ), वह परोक्ष है | १०११. पलास ( पलाश ) पलं असतीति पलासो । १०१२. पलिउंचण (पलिकुञ्चन ) ( स्थाटी प ४६ ) जो पल / मांस खाता है, वह पलाश / राक्षस है । परि - समन्तात् कुञ्चयन्ते —— वक्रतामापाद्यन्ते येन कुञ्चनम् । जिसके द्वारा सारी प्रवृत्ति वक्र हो जाती है, वह पलिकुञ्चन / माया है । १०१३. पलिमंथु ( परिमन्धु) ( अनुद्वा ३२१ ) प्रतिकुंच्यते अन्यथा प्रतिसेवितमन्यथा कथ्यते यया सा प्रतिकुंचना । ( व्यभा १ टी प ५० ) Jain Education International जिसके द्वारा प्रतिकुंचित किया जाता है / छिपाया जाता है, वह प्रतिकुंचना /माया है । तत्पलि ( सूचू १ प १७ ) पगरिसेण संजमो मंथिज्जति जेण सो पलिमंथो । For Private & Personal Use Only परि - सर्वतो मथ्नन्ति - विलोडयन्ति परिमन्यवः । ( निचू २ पृ २३७ ) ( बृटी पृ १६६७ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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