SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९. निरक्त कोश १००३. परिसा (परिषद्) परितः सर्वतः सीदति परिषत् । (दश्रुचू प ७०) जहां चारों ओर लोग बैठे रहते हैं, वह परिषद् है । १००४. परिसाडण (परिशाटन) परिशटति परिभ्रश्यति इति परिशाटनानि । परिशाट्यन्ते इति परिशाटनानि । (व्यभा १ टी प ५) जिन्हें परिशाटित/विकीर्ण किया जाता है, वे परिशाटन/ बीज हैं। १००५. परिस्सव (परिस्रव) परि-समन्तात् सवति-गलति यैरनुष्ठानविशेषैस्ते परिस्रवाः । (आटी प १८१) जिन अनुष्ठानों से सर्वतः परिस्रवण निर्जरण होता है, वे परिस्रव/निर्जरास्थान हैं। १००६. परिहरण (परिहरण) परिह्रियते इति परिहरणम् । (व्यभा २ टी प १०) ___ परिहार करना/छोड़ना परिहरण है । १००७. परिहार (परिहार) परिहार्यते इति परिहारः। परिहियते वय॑ते च अस्मात् परिहारः। (निचू ४ पृ ३८८) __ जिससे प्राप्त प्रायश्चित्त का वहन और दोष का वर्जन शोधन होता है, वह परिहार/प्रायश्चित्त का एक प्रकार है। १००८. परीसंह (परीषह) परिसहिज्जते इति परीसहा । (आवचू २ पृ १३९) जो सहन किए जाते हैं, वे परीषह हैं। १००६. परूवणा (प्ररूपणा) साधु प्रकृष्टा प्रधाना प्रगता प्ररूपणा वर्णानां प्ररूपणा । (आवचू १ पृ ५०४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy