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________________ निरक्त कोश १५३ पद्यतेऽनेन पदम् । (दटी प ८७) जिससे चला जाता है, वह पद/पैर हैं। ९५७. पद (पद) पद्यतेऽनेनेति पदं। (सूचू १ पृ ५६) जिसके द्वारा जाया जाता है, वह पद/मार्ग है । ६५८. पदपास (पदपाश) पदं पाशयतीति पदपाशः। (सूचू १ पृ ३३) जो पद/पैर को बांधता है, वह पादपाश/जाल है । ६५६. पभंगुर (प्रभंगुर) भिसं भंगसीलं पभंगुरं । (आचू पृ २०५) जो अत्यन्त विनाशधर्मा है, वह प्रभंगुर शरीर है। ९६०. पभावणा (प्रभावना) प्रभाव्यते विशेषतः प्रकाश्यते इति प्रभावना। (व्यभा १ टी प २७) किसी वस्तु को प्रकर्ष से प्रकाश में लाना प्रभावना है। ६६१. पभु (प्रभु) प्रभवतीति प्रभुः। (सूचू १ पृ १५०) जो समर्थ होता है, वह प्रभु है । ९६२. पमत्त (प्रमत्त) प्रमाद्यन्ति–संयमयोगेषु सीदन्ति स्म प्रमत्ताः। (प्रज्ञाटी प ४२४) जो संयमयोगों में प्रमाद/आलस्य करते हैं, वे प्रमत्त हैं । ६६३. पमाण (प्रमाण) प्रमीयतेऽनेनेति प्रमाणम् । (उचू प ११) जिससे मापा जाता है, वह प्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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