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________________ -१८२ पभणति वा पतिभा । ५१. पत्त (पात्र) जो प्रकर्षरूप से कथन करती है, वह प्रतिभा है । पतन्तमाहारं पातीति पात्रम् ५२. पत्त (पत्र) パ ( आटी प २७६ ) जो गिरते हुए आहार को धारण करता है, वह पात्र है । पात्यतेऽनेनात्मा तमिति पत्रम् | ( सूचू २ पृ ३४७) जिसके द्वारा पक्षी उड़ान भरता है, वह पत्र / पंख है । पतन्तं त्रायत इति पत्रम् | ( उशाटी प २६६ ) जो गिरते हुए की रक्षा करता है, वह पत्र / पंख है | ६५३. पत्ती (पत्नी) पाति तमिति पत्निः । ५४. पत्तोय ( पत्रोपग ) जिसकी रक्षा की जाती है, वह पत्नी है । पत्राण्युपगच्छति - प्राप्नोति पत्तोपगः । ५५. पत्थार ( प्रस्तार ) प्रस्तीर्यत इति प्रस्तारः । Jain Education International निरुक्त कोश ( सूचू १ पृ २३३) जो पत्तों से युक्त होते हैं, वे पत्रोपग / वृक्ष हैं । चटाई है । ५६. पद (पद) गम्मते इति पदं । १. 'पात्र' के अन्य निरुक्त पाति आधेयं पात्रम् । जो आधेय की रक्षा करता है, वह पात्र है । पीयतेऽस्मादिति पात्रम् । (अचि पृ २२७ ) जिससे पान किया जाता है, वह पात्र है । ( बृटी पृ ६६१) जिसे प्रस्तारित किया जाता है / फैलाया जाता है, वह प्रस्तार / ( उच् पृ २०८ ) For Private & Personal Use Only ( स्थाटी प १०७ ) ( दअचू पृ ३६ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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