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________________ १८४ ६४. पमेदिल (प्रमेदुर) अतीव मेदो जस्स सो पमेइलो । ६५. पमोक्ख ( प्रमोक्ष) जो अधिक मेद / वसा वाला है, वह प्रमेदुर है । प्रकर्षेण मोक्षयति — मोचयतीति प्रमोक्षः । ६६. पय (पद) पद्यते - गम्यते इति पदम् । जो सर्वथा मुक्त करता है, वह प्रमोक्ष है । ६७. पयला ( प्रचला ) ( स्थाटी प २१७ ) जिसके द्वारा जाना जाता है, वह पद / संख्यास्थान है । उपविष्ट ऊर्ध्वस्थितो वा प्रचलत्यस्यां स्वापावस्थायामिति प्रचला । ( स्थाटी प ४२८ ) जिस निद्रा में घर् घर् शब्द सुनाई है । ६८. पया (प्रजा) : नींद के कारण जिसमें बैठे-बैठे या खड़े-खड़े सिर का प्रचलन / डोलना होता है, वह प्रचला / निद्रा - विशेष है । प्रचलति घूर्णतेऽस्यामिति प्रचला । पयांति पजणेंति वा पया । Jain Education International ६६. पयायसाल (प्रजातशाल) ( दजिचू पृ २५३ ) जो पैदा करती हैं, वे प्रजा /स्त्रियां हैं । निरुक्त कोश पयायसाला / ( उशाटी प ६२१ ) वृक्ष है | For Private & Personal Use Only (प्राक १ टी पृ १४) देता है, वह प्रचलान धविणिग्गता डालमूला साला जेसि पकरिसेण जाता ते ( दअचू पू १७२ ) जिस वृक्ष के अत्यधिक शालाएं / शाखाएं हैं, वह प्रजातशाल / ( आचू पृ ११६ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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