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________________ निरक्त कोश १५१ ९४४. पण्णा (प्रज्ञा) प्रज्ञा अस्यां जायत इति पण्णा।' (दश्रुचू प ३) जिस वय में प्रज्ञा उत्पन्न होती है, वह प्रज्ञा (अवस्था) है । ९४५. पण्णाण (प्रज्ञान) प्रकर्षण ज्ञायतेऽनेनेति प्रज्ञानम् । (आटी प २३३) जिसके द्वारा उत्कृष्ट रूप में जाना जाता है, वह प्रज्ञान है । ९४६. पण्णावग (प्रज्ञापक) प्रज्ञापयतीति प्रज्ञापकः।। (नंटी पृ ५२) जो अच्छे प्रकार से ज्ञापन करता है| बताता है, वह प्रज्ञापक ६४७. पतंग (पतङ्ग) पंतं पतंतीति पतंगा। (उचू पृ २०६) जो फुदक फुदक कर चलते हैं, वे पतंग कीटविशेष हैं। ९४८. पतग्गह (पतद्ग्रह) पतत् भक्तं पानं वा गृह्णातीति पतद्ग्रहः। (राटी पृ २९२) ___ जो गिरते हुए भक्त-पान को ग्रहण करता है, वह पतद्ग्रह/ पात्र है। ९४६. पतत्त (पतत्र) पतन्तं त्रायन्तीति पतत्राणि । (सूचू १ पृ २२८) जो गिरते हुए की रक्षा करते हैं, वे पतत्र/पंख हैं। ६५०. पतिभा (प्रतिभा) तांस्तान् प्रति अर्थान् भातीति प्रतिमा। जो अर्थो/रहस्यों को प्रकट करती है, वह प्रतिभा है। १. पंचमि तु दसं पत्तो, आणुपुग्वीइ जो नरो। ___ इच्छियत्थं विचितेइ, कुटुंबं वाभिकंखई । (दटी प ८) २. पतः गच्छति पतङ्गः। (अचि पृ २७२) पतन् उत्प्लवन् गच्छति पतङ्गः। (वा पृ ४२०४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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