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________________ १८० निरुक्त कोश पण्णा-बुद्धी ताए अवाप्तं पण्णत्तं । (नंचू पृ १३) जो बुद्धि से गृहीत है, वह प्रज्ञप्त है। ६३६. पण्णत्त (प्राज्ञाप्त) प्राज्ञात्-तीर्थकरादाप्तं प्राप्तं गणधरैरिति प्राज्ञाप्तम् । जो प्राज्ञ/तीर्थंकरों से गणधरों द्वारा प्राप्त किया गया है, वह प्राज्ञाप्त है। प्राजः—गणधरैस्तीर्थकरादात्तं-गृहीतमिति प्राज्ञाप्तम् । जो प्राज्ञ/गणधरों द्वारा प्राप्त है, वह प्राज्ञाप्त है। प्रज्ञया आप्त---प्राप्तं प्राज्ञाप्तम् । (अनुद्वामटी प २) जो प्रज्ञा द्वारा प्राप्त है, वह प्राज्ञाप्त है। ९४०. पण्णवग (प्रज्ञापक) पण्णवतीति पण्णवयो। (दअचू पृ २३३) जो मोक्षमार्ग का प्रज्ञापन/प्ररूपण करता है, वह प्रज्ञापक/ मुनि है। ६४१. पण्णवणा (प्रज्ञापना) प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते जीवादयो भावा अनया शब्दसंहत्या इति (प्रज्ञाटी प ४) जिसमें जीव आदि पदार्थों का प्ररूपण है, वह प्रज्ञापना (सूत्र) है। ९४२. पण्णवणी (प्रज्ञापनी) पण्णविज्जति तीए इति पण्णवणी। (दअचू पृ १५६) जो प्रज्ञापन/निरूपण करती है, वह प्रज्ञापनी/भाषा है। ९४३. पण्णा (प्रज्ञा) प्रज्ञायते अनयेति प्रज्ञा। (सूचू २ पृ ३५४) जिससे विशेष जाना जाता है, वह प्रज्ञा है। प्रज्ञापना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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