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________________ १५८ निरुक्त कोश ८२०. दुप्पजोवि (दुष्प्रजीविन्) दुक्खेन-कृच्छण प्रकर्षणोदारभोगापेक्षया जीवितुं शीला दुष्प्रजीविनः। (दटी ५ २७२) ___जो अत्यन्त दुःख में जीवन यापन करते हैं, वे दुष्पजीवी ८२१. दुप्पहंसय (दुष्प्रधर्षक) दुःखेन प्रधय-पराभूयन्ते केनापीति दुष्प्रधर्षकाः। (उशाटी प ३५३) जिन्हें कठिनाई से प्रधर्षित/पराभूत किया जाता है, वे दुष्प्र धर्षक/बहुश्रुत हैं। ८२२. दुप्पूरय (दुष्पूरक) दुःखं पूर्यत इति दुष्पूरए। (उचू पृ १७६) जो कठिनाई से पूर्ण होता है, वह दुष्पूरक है । ८२३. दुम (द्रुम) भूमीए आगासे य दोसु माया दुमा । जो भूमि और आकाश-दोनों में समाते हैं, वे द्रुम/वृक्ष हैं । दू:-साहा ताओ तेसि विज्जति ते द्रूमा। (दअचू पृ ७) जिनके दू/शाखाएं हैं, वे द्रुम हैं। ८२४. दुम्मारि (दुर्मारि) दुष्टदेवतादिकृतं सर्वगतं मरणं दुर्मारि। (प्रसाटी प १०८) दुष्ट देव आदि के द्वारा जो व्यापक मरण होता है, वह दुर्मारि है। ८२५. दुरणपाल (दुरनुपाल) दुःखेनानुपाल्यत इति दुरनुपालः । (उशाटा प ५०२) जिसका अनुपालन कठिनाई से किया जाता है, वह दुरनुपाल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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