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________________ निरुक्त कोश ८१३. दुच्चर ( दुश्चर ) दुक्करं चरिज्जतीति दुच्चरं । है । ८१४. दुज्जय (दुर्जय ) ( आचू पू ३१८ ) जिसका कठिनाई से आचरण किया जाता है, वह दुश्चर दुक्खं जिणिज्जंतीति दुज्जयाः । दुःखेन जीयते--अभिभूयन्ते इति दुर्जयाः । ८१५. दुण्णाम (दुर्नाम ) जो कठिनाई से जीता जाता है, वह दुर्जय है । है । ८१६. दुतितिक्ख ( दुस्तितिक्ष ) मदाद् दुष्टं नमनं दुर्नाम । (भटी पृ १०५१ ) अभिमान वश कठिनाई से नमन करना दुर्नाम / दुर्नमन ८१७. दुत (दुर्दान्त) दुःखेन तितिक्ष्यते - सह्यते इति दुस्तितिक्षम् । ( स्थाटी १२८६ ) जो दुःखपूर्वक सहा जाये, वह दुस्तितिक्ष है । दुष्टं दमनं दुर्दान्तम् । १५७ ८१८. दुपरिच्चय ( दुष्परित्यज ) Jain Education International ( उचू पृ १८४) ( उशाटी प ३६० ) ( उशाटी प ६३१ ) जिसका कठिनाई से दमन किया जाता है, वह दुर्दान्त है । ८१६. दुपस (दुर्दर्श) दुःखेन - कृच्छ्रेण परित्यज्यन्ते -- परिह्रियन्ते इति दुष्परित्यजा: । ( उशाटी प २६२ ) जो कठिनाई से परित्यक्त होते हैं, वे दुष्परित्यज हैं । दुःखेन दर्श्यते इति दुर्दर्शम् । ( स्थाटी व २८७ ) जिस तत्त्व का कठिनाई से निर्देशन किया जाता है, वह दुर्दर्श (तत्त्व ) है | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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