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________________ १५६ निरुक्त कोश ८०७. दीवग (दीपक) दोवइ जं तत्ते दीवगं तं तु। (प्रसा ६४६) तत्त्वानि दीपयति-परस्य प्रकाशयति दीपकम् । (प्रसाटी प २८३) जो तत्त्वों को दीपिक्क/प्रकाशित करती है, वह दीपक (सम्यक्त्व) है। ८०८. दुक्ख (दुःख) दुःखयतीति दुःखम् । (आटी प ७१) जो दुःखित/उत्पीडित करता है, वह दुःख है । ८०६. दुक्खबोहि (दुःखबोधि) दुक्खेण बुज्झइ दुक्खबोही। (आचू पृ १९) जो कठिनाई से समझता है, वह दुःखबोधी है । ८१०. दुक्खसह (दुःखसह) दुक्खं सारीर-माणसं सहतीति दुक्खसहो। (दअचू पृ २०१) जो शारीरिक और मानसिक दुःखों को सहन करता है, वह दुःखसह है। ८११. दुग्ग (दुर्ग) दुखं गम्यत इति दुर्गः। (सूचू १ पृ १४६) ___ जहां दु:ख कष्टपूर्वक जाया जाता है, वह दुर्ग है। ८१२. दुग्गम (दुर्गम) दुःखेन गम्यत इति दुर्गमम् । (स्थाटी प २८६) जो कठिनाई से जाना जाता है, वह दुर्गम है । १. 'दुःख' का अन्य निरुक्त दु इति अयं सद्दो कुच्छिते दिस्सति । खं सद्दो पुन तुच्छे । तस्मा कुच्छितत्ता तुच्छत्ता च दुक्खं ति वुच्चति (वि १६/१०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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