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________________ निरुक्त कोश ८०३. दिसा (दिश् ) दिसते जा सा दिसा ।' है | दिस्सति जेण सा दिसा । ( आचू पृ १० ) जो पूर्व आदि का व्यपदेश / कथन करती है, वह दिशा जो अवकाश देती है, वह दिशा है । दिश्यते यया शिष्यः सा दिक् । है । ८०४. दीण ( दीन ) दीयते इति दीनः । ( पंटी प १७४ ) जिससे शिष्य को कालज्ञान कराया जाता है, वह दिशा जिसे दिया जाता है, वह दीन है । ८०५. दीप ( द्वीप) ८०६. दीव (दीप ) दीप्यते दीपः । Jain Education International द्विधा fraft वा द्वीपः । ( सूचू १ पृ २०० ) जो दो विपरीत दिशाओं ( पूर्व-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण) से पान / जल का स्पर्श करता है, वह द्वीप है । जो दीप्त होता है, वह दीप है । ( आचू पृ १७८ ) १५५ ( उचू पु ५३ ) १. ( क ) दिश्यते - व्यपदिश्यते पूर्वादितया वस्त्वनयेति दिक् । For Private & Personal Use Only ( दटी प १६ ) (ख) कृत्वैवमवधि तस्मादिदं पूर्वञ्च पश्चिमम् । इति देशो निदिश्येत यया सा दिगिति स्मृता ॥ ( स्थाटी प १२७ ) २. दिशति अवकाशं ददाति या सा दिक् । ( शब्द २ पृ ७०८ ) ३. द्विता आपोऽस्मिन्निति द्वीपः । ( आटी प २४६ ) ( शब्द २ पृ७०८ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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